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हिमाचल चुनाव: असली मुकाबला क्या बीजेपी और 'आप' के बीच होने वाला है?
देश के दो राज्यों को 'देवभूमि' माना जाता है क्योंकि प्राचीन जनश्रुति के अनुसार देवताओं ने हिमालय को ही अपना ठिकाना बना रखा है.उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के कई शहरों को देवी-देवताओं की भूमि के तौर पर आज भी इस मान्यता के आधार पर पूजा जाता है कि इसी स्थान पर उनका वास है.दोनों हैं,तो भले ही छोटे राज्य लेकिन देश की राजनीति में पहाड़ी प्रदेश होने के नाते अपनी अलग अहमियत भी रखते हैं.इस साल के अंत में गुजरात के साथ ही हिमाचल में भी विधानसभा के चुनाव होने हैं.
दिल्ली और पंजाब पर कब्ज़ा करने के बाद आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल की राजनीति का सारा फोकस अब छोटे राज्यों में अपनी ताकत बढ़ाने पर है.हालांकि उत्तराखंड में हाल ही में सम्पन्न चुनाव में उनकी पार्टी को उम्मीद के मुताबिक कोई कामयाबी नहीं मिल पाई लेकिन अब वे हिमाचल में आप को तीसरी ताकत बनाने के लिए जी-जान से जुट गए हैं.
पिछले दिनों 6 अप्रैल को ही केजरीवाल पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान को साथ लेकर हिमाचल के मंडी जिले में रोड शो करके वहां के लोगों को अपनी ताकत की पहली झलक दिखा चुके हैं.अब 23 अप्रैल को वे दिल्ली से कांगड़ा जाकर आप की बढ़ती हुई ताकत की कुछ अलग ताकत दिखाने के मूड में हैं.जाहिर है कि इस बार भी वे भगवंत मान को अपना सारथी रखेंगे.बताते हैं कि कांगड़ा में शाहपुर के चंबी मैदान में होने वाली इस रैली में वे आप के होने वाले अगले मुख्यमंत्री पद के चेहरे का ऐलान कर सकते हैं.केजरीवाल ने पंजाब में भी यही रणनीति बनाई थी और बाकी पार्टियों को मात देते हुए चुनाव से काफ़ी महीने पहले ही अपनी पार्टी के सीएम पद के उम्मीदवार का ऐलान कर दिया था.हिमाचल में भी वे उसी रणनीति को आगे बढ़ाते हुए इस मामले ने बीजेपी और कांग्रेस को पीछे छोड़ना चाहते हैं.
केजरीवाल की इस रैली से पहले हिमाचल बीजेपी और कांग्रेस के तकरीबन दो दर्जन नेताओं के आप का दामन थाम लेने से जाहिर है कि केजरीवाल के हौंसले और बुलंद ही हुए होंगे.बीजेपी छोड़कर आप में आने वाले नेताओं में कुछ ऐसे भी हैं, जिनका अपने जिले में ठीकठाक जनाधार है.लिहाज़ा, राजनीतिक विश्लेषक एक बड़ा सवाल ये उठा रहे हैं कि पिछले पांच दशकों से कांग्रेस-बीजेपी के बीच होती जा रही सियासी लड़ाई क्या इस बार कोई नया रंग दिखाने वाली है?
हिमाचल की राजनीति के जानकार ये भी मान रहे हैं कि जिस तरह से पिछले दो साल में आम आदमी पार्टी ने छोटे कस्बों के स्तर तक अपनी जमीन बनाई है,उससे ऐसे आसार नजर आ रहे हैं कि इस बार मुख्य मुकाबला बीजेपी और आप के बीच हो सकता है.
हालांकि हिमाचल का सियासी इतिहास बताता है कि यहां की जनता ने हर पांच साल में अपनी सरकार बदली है. यानी एक बार कांग्रेस तो अगली बार बीजेपी और साल 1980 से ये सिलसिला बदस्तूर जारी है.लेकिन हिमाचल की जनता इस बार ये मिथ अगर तोड़ दे,तो कोई हैरानी नहीं होनी चाहिये.हिमाचल में महंगाई व बेरोजगारी जैसे मुद्दों के अलावा पावर प्रोजेक्ट और सीमेंट निर्माण के बढ़ते हुए कारखाने भी बड़ा चुनावी मुद्दा बन सकते हैं,जिसके कारण पर्यावरण को बेतहाशा खतरनाक नुकसान हो रहा है.
आम आदमी पार्टी प्रदेश के युवाओं की बेरोजगारी के अलावा इन दोनों पर भी फ़ोकस कर रही है.जाहिर है कि केजरीवाल जब वहां जाएंगे,तो दिल्ली और पंजाब की तर्ज़ पर ही बिजली,पानी मुफ्त देने के साथ ही मोहल्ला क्लीनिक खोलने और सरकारी स्कूलों की हालत सुधारने के वादों की बरसात करेंगे.कोई बड़ी बात नहीं कि वे पंजाब की तरह ही 18 साल से ज्यादा उम्र की तमाम महिलाओं को हर महीने एक हजार रुपये देने की सौगात का भी ऐलान कर दें.
वैसे बताते हैं कि कांगड़ा का चंबी मैदान कई मायनों में अहम है और इसी मैदान से अक्सर राज्य की सत्ता बदलने का शंखनाद भी हुआ है.पीएम मोदी, राहुल गांधी और अरुण जेटली के बाद केजरीवाल चौथे ऐसे नेता होंगे,जो इस मैदान में किसी रैली को संबोधित करेंगे.चूंकि यह मैदान काफी बड़ा है,लिहाज़ा यहां भीड़ जुटाना हर पार्टी के लिए एक बड़ी चुनौती होती है.इसीलिये आप ने आसपास के चार जिलों से अपने कार्यकर्ताओं की भीड़ जुटाने पर भी खास ध्यान दिया है,ताकि रैली फ्लॉप होने का कोई संदेश न जाये.
जाहिर है कि मंडी के बाद कांगड़ा में अपनी ताकत दिखाने के आप के इस फैसले से राज्य की सत्तारुढ़ पार्टी बीजेपी समेत मुख्य विपक्षी कांग्रेस भी बेचैन व परेशान हैं.लेकिन देखना ये होगा कि हिमाचल की जनता केजरीवाल के वादों पर किस हद तक भरोसा करती है?
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