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Kamrunag Lake : जानिए क्या है कमरुनाग झील का रहस्य?
हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) की हसीन वादियों के बीच एक ऐसी झील है जिसमें आज भी अरबों रुपए का खजाना भरा पड़ा है। इस झील में छिपा खजाना कुछ वर्षों पुराना नहीं बल्कि महाभारत काल का बताया जाता है। जिसने भी इसे चोरी करने की कोशिश की उसके साथ कुछ ऐसा हो गया कि फिर किसी ने कभी ऐसी कोशिश नहीं की। आइए जानते हैं इस झील से जुड़े रहस्यों और यहां की मान्यताओं के बारे में…
हिमाचल प्रदेश को देव भूमि के नाम से जाना जाता है. यहाँ के देव स्थानों के दर्शनों की अभिलाषा रखने बाला प्रत्येक व्यक्ति कमरुनाग जरुर जाना चाहता है. ये महाभारत कालीन स्थल के रूप में विख्यात है। कमरुनाग झील हिमाचल प्रदेश की प्रसिद्ध झीलों में से एक है. ये झील मंडी जिले की तीसरी प्रमुख झील है. यहाँ पर कमरुनाग देवता का प्राचीन मंदिर भी स्थित है. यहाँ आषाढ़ महीने में एक विशाल मेले का आयोजन होता है. हिमाचल प्रदेश के मंडी शहर से लगभग 51 किलोमीटर दूर करसोग घाटी में स्थित कमरुनाग झील समुद्र तल से लगभग 3,334 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. देवदार के घने जंगलो से घिरी ये झील प्राकृति प्रेमियों के लिए स्वर्ग से कम नहीं है. झील तक पहुँचने का रास्ता भी बहुत ही सुरम्य है और यहाँ के लुभावने दृश्यों को देखकर पपर्यटक अपनी सारी थकान भूल जाते है.
कमरुनाग झील के किनारे पहाड़ी शेली में निर्मित कमरुनाग देवता का प्राचीन मंदिर भी स्थित है. दूर-2 से आये लोग मनोकामना पूरी होने पर करंसी नोट सोना चाँदी यहाँ पर अर्पण करते है. देव कमरुनाग के प्रति लोगों की आस्था इतनी गहरी है कि झील में सोना चाँदी और मुद्रा अर्पित करने की ये परम्परा सदियों से चली आ रही है. ये झील आभूषणों से भरी है. झील में अरबों की दौलत होने के बाबजूद भी सुरक्षा का कोई प्रबंध नहीं है. यहाँ पर सामान्य स्थितियों जितनी सुरक्षा भी नहीं है. कहा जाता है कि कमरुनाग इस खजाने की रक्षा स्वयं करते है. देव कमरुनाग मंडी जिला के सबसे बड़े देव है.
इस मंदिर का इतिहास भगवान् कृष्ण और पांड्वो से जूडा हुआ है. देव कमरुनाग महाभारत कालीन माना जाता है. अपनी यथा शक्तिओं के मालिक राजा रत्नयक्ष जिसे बर्बरीक के नाम से भी जाना जाता है. उसकी इच्छा थी की वे भी महाभारत के युद्ध में हिस्सा ले. जब उसने अपनी माता से युद्ध भूमि में जाने की आज्ञा लेनी चाही तो माँ ने एक शर्त पर आज्ञा दी की वे उस सेना से लड़ेगा जो हार रही होगी.
जब महाभारत का युद्ध कौरवों की ओर से लड़ने वो निकले तो रास्तें में भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें रोक लिया. व्राह्मण के रूप में मिले श्रीकृष्ण ने उनकी परीक्षा ली. उन्हें मालूम था कि बर्बरीक अगर कौरवों की तरफ ले लड़ेंगा तो पांड्वो की हार तय है. भगवान श्रीकृष्ण ने उनकी धनुष विद्या की परीक्षा ली. इस दौरान राजा बर्बरीक ने एक ही तीर से पीपल के सारे पत्ते छेद डाले. एक पत्ता भगवान श्रीकृष्ण ने अपने पांव के निचे दवा कर रखा था लेकिन उस पर भी छेद पड़ चूका था. इस बीच व्राह्मण का रूप धरे भगवन श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से उनका शीश दान में मांग लिया. उन्होंने अपना शीश श्रीकृष्ण को दे दिया. लेकिन बदले में बचन माँगा कि जब तक महाभारत युद्ध ख़त्म नहीं होता उनके शीश में प्राण रहें और वो पूरा युद्ध देख सकें. श्रीकृष्ण ने उन्हें बचन दिया कि ऐसे ही होगा.
युद्ध खत्म होने के बाद भगवन श्रीकृष्ण पांडवों को उनके पास लाए और उनकी पूजा अर्चना की तथा उन्हें वरदान दिया कि युगों-2 तक तुम्हारी महिमा जारी रहेगी. लोग तुम्हे देवता के रूप में पूजा करेंगे. इसके वाद पांड्वो ने उसे अपना कुल देवता मानकर पूजा की. माना जाता है कि कमरुनाग घाटी में स्थापित मूर्ति भी पांड्वो ने स्थापित की थी. इस मंदिर को और भी रोचक बनाती है यहाँ स्थित झील. कहा जाता है मंदिर की स्थापना के वाद पांडवों ने अपने पास मजूद सोना चाँदी इस झील में डाल दिया. तब से यहाँ आने वाले भक्त मनोकामना पूरी होने पर इस झील में रूपये, सोना और चाँदी डालते है.
इस झील से इस सम्पति को निकलने के लिए कई बार चोरी का प्रयास हुआ है मगर जो भी इस नियत से आया वो अंधा हो गया और कुछ भी हासिल न कर पाया. पुरानी मान्यताओं के अनुसार एक बार एक व्रिटिश व्यक्ति ने इस झील से सोना निकलने की कोशिश की लेकिन वे इसमें नाकामयाब रहा और काफी बीमार हो गया. कई विद्वान् मानते है कि यहाँ स्थापित खजाने की रक्षा खुद नाग करते है. कमरुनाग मंदिर में ठण्ड के दिनों में जाना काफी मुश्किल होता है. इस वक्त पूरा इलाका वर्फ़ की मोटी चादर से ढक जाता है ऐसे में यहाँ केवल अनुभवी ट्रैकर ही पहुंचते है. मंदिर का आकार काफी छोटा है लेकिन फिर भी प्रत्येक वर्ष यहाँ पर श्रधालुओं की तादाद बढती जाती है. प्रभु कमरुनाग को बड़ा देव भी कहा जाता है. तो दोस्तों उम्मीद करता हूँ कि हमारे द्वारा दी गयी जानकारी आपको अच्छी लगी होगी.